कभी तुम हमसे मिलने आना….
बिना किसी ख्वाहिश के,
बिना किसी तमन्ना के,
इस बार ना कोई बहाना बनाना,
हो सके तो बस एक बार तुम हमसे
मिलने आना ….
देखो शिकायतें तो बहुत होंगी,
लफ़्ज़ों की लुका छुपी भी होंगी,
पर इस बार तुम नज़रें ना छुपाना,
एक बार सच्चे दिल से हमसे मिलने
आना…
माना थोड़ा मुश्किल होगा यूँ
सामने आना,
इतने दिनों बाद मुस्कुराना,
लेकिन तुम आंखों से ही सब कुछ
कह जाना,
कुछ पल के लिए ही सही तुम हमसे
मिलने आना…
हाँ, जंग जैसा है अपने लिए कुछ क्षण
चुराना,
शायद तुम मशगूल होगे ,
अपने आप से मजबूर होगे,
लेकिन सोचना मत कि क्या कहेगा
ये ज़माना,
चुप चाप धीरे से तुम कभी हमसे
मिलने आना….
तुम सोचते होगे आखिर अपने आप
से भी होता है कोई मिलना मिलाना?
अपने आप को भी कोई भूलता है?
अपने आप से भी कोई शिकायत करता है?
लेकिन,सच मानो एक
बार मुस्कुरा कर,
आंखों की नमी से झाँक कर ,
शब्दों की अलमारी में ताला डालकर,
एक नयी यादों की किताब लिख डालना,
क्यूंकि तुम्हें ही मिटाना है ये तुम से हम तक का फासला,
ज़माने से नहीं इस बार तुम कभी
यूँही सिर्फ खुद से मिलने आना,
हो सके तो कभी हमसे मिलने आना……….
इन्तेज़ार
श्वेता खरे
Lovely
ReplyDeleteThank u so much dear
ReplyDelete